खुुद के लिये — एक ग़ज़ल

खुुद के लिये भी कभी आज़माइश रखा करो।
ख्वाहिश न बढ़े बेवजह ये ख्वाहिश रखा करो।।1।।
हर ख्वाब का नसीब कब होती है हकीकत,
मगर सुनहरे ख्वाब की गुंजाइश रखा करो।।2।।
सरेबाजार कितनो को उतारा है फलक से,
खुद की भी मगर कोई नुमाइश रखा करो।।3।।
न लगाना पड़े नक़ाब चेहरे पे फरेब का,
इतनी बुलंद अपनी ये पैदाइश रखा करो।।4।।
काबिल बन पूरी कर सको तुम जहां के लिये,
सामने सबके बस वही फरमाइश रखा करो।।5।।
निवाले आखिरी मिल जायें अपनी औलाद से,
बुर्जुगो की अपने ऐसी ही परवरिश रखा करो।।6।।
घुटने लगे कभी जो दम साजिशो की तपन से ,
लिफाफे में उसके प्यार की एक बारिश रखा करो।।7।।
दम तोड़ देंगी नफरतें औरो की खुद—ब—खुुद,
दुआ में अतुल मुहब्बत की कोशिश रखा करो।।8।।

कवि अतुल जैन सुराणा
09755564255

Source : कवि अतुल जैन सुराणा

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Name: धीरज मिश्रा (संपादक)

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